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शु॒क्रस्या॒द्य गवा॑शिर॒ इन्द्र॑वायू नि॒युत्व॑तः। आ या॑तं॒ पिब॑तं नरा॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

śukrasyādya gavāśira indravāyū niyutvataḥ | ā yātam pibataṁ narā ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

शु॒क्रस्य॑। अ॒द्य। गोऽआ॑शिरः। इन्द्र॑वायू॒ इति॑। नि॒युत्व॑तः। आ। या॒त॒म्। पिब॑तम्। न॒रा॒॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:41» मन्त्र:3 | अष्टक:2» अध्याय:8» वर्ग:7» मन्त्र:3 | मण्डल:2» अनुवाक:4» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब अध्यापक और अध्येताओं के विषय को कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (नरा) बिजली और पवन के समान वर्त्तमान अग्रगन्ता मनुष्यो ! तुम (अद्य) आज (शुक्रस्य) अज्ञानता सोखने और (गवाशिरः) किरण को अर्थात् विद्याओं को व्याप्त होनेवाले (नियुत्वतः) नियमयुक्त के समीप (आ,यातम्) आओ और जल रस (पिबतम्) पिओ ॥३॥
भावार्थभाषाः - जैसे बिजुली और पवन सर्वत्र अभिव्याप्त और सब जगत् की रक्षा करते हैं, वैसे उत्तम काम कर और शुद्ध जल पीके आरोग्यपन और सबकी उन्नति करनी चाहिये ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथाऽध्यापकाऽध्येतृविषयमाह।

अन्वय:

हे नरा इन्द्रवायू इव वर्त्तमानौ युवामद्य शुक्रस्य गवाशिरो नियुत्वत आयातं शुक्रस्योदकस्य रसं पिबतम् ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (शुक्रस्य) शोषकस्योदकस्य। शुक्रमित्युदकना० निघं० १। १२। (अद्य) इदानीम् (गवाशिरः) गाः किरणान् अश्नुते तस्य (इन्द्रवायू) विद्युत्पवनौ (नियुत्वतः) नियमेन वर्त्तमानस्य (आ) (यातम्) प्राप्नुतम् (पिबतम्) (नरा) नायकौ ॥३॥
भावार्थभाषाः - यथा विद्युत्पवनौ सर्वत्राऽभिव्याप्तौ सर्वं जगद्रक्षतस्तथोत्तमानि कर्माणि कृत्वा शुद्धोदकं पीत्वाऽरोग्यं सर्वेषामुन्नतिश्च कार्य्या ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जसे विद्युत व पवन सर्वत्र अभिव्याप्त असून सर्व जगाचे रक्षण करतात तसे उत्तम काम करून शुद्ध जल पिऊन आरोग्याचे रक्षण करून सर्वांची उन्नती केली पाहिजे. ॥ ३ ॥